शाम की दलानो पर...... रहें नहीं अरमान अधूरे बच्चा बन बचपन जी लेना! शाम की दलानो पर...... रहें नहीं अरमान अधूरे बच्चा बन बचपन जी लेना!
घर आंगन कितना सुहाता था मन, आज शहरों में एक बालकनी में सिमट रह जाता तन। घर आंगन कितना सुहाता था मन, आज शहरों में एक बालकनी में सिमट रह जाता तन।
आज जब तेरी याद आती है तो दिल बहुत रोता है। आज जब तेरी याद आती है तो दिल बहुत रोता है।
प्रेम मीरा और कृष्ण है निश्छल मन का भाव है एक माँ का उद्गार है एक पत्नी का श्रृंगार है। प्रेम मीरा और कृष्ण है निश्छल मन का भाव है एक माँ का उद्गार है एक पत्नी का श्...
बेशक सब कुछ लुट जाए किंतु मेरे शब्द न मिटने पाए। सदैव साथ निभाए और मेरे जज्बातों में घुल जाए।। बेशक सब कुछ लुट जाए किंतु मेरे शब्द न मिटने पाए। सदैव साथ निभाए और मेरे जज्...
न नाम हो न पहचान हो गुजरूं यूं लगे हूँ ही नहीं तन्हाई कि काली परछाईं, जो जुड़ चुकी हो न नाम हो न पहचान हो गुजरूं यूं लगे हूँ ही नहीं तन्हाई कि काली परछाईं, जो ज...